जानिए छठ महापर्व कब से शुरू? कैसे करें व्रत-पारन, कब है शुभ मुहूर्त; क्यों है इतना कठिन व्रत

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वाराणसी     छठ पूजा हमारे जीवन का वो पावन पर्व है जो लोक आस्था, श्रद्धा और सच्ची भक्ति का प्रतीक है. इस दिन छठी मैया और भगवान सूर्यदेव की उपासना की जाती है. ऐसे में घाटों पर गूंजते गीत, दीयों की रोशनी और गंगा की लहरों पर झिलमिलाती आरती का दृश्य मन को शांति देता है. इसी के साथ यूपी के सबसे बड़े महापर्व छठ की तैयारी शुरू हो गई हैं. यह महापर्व शुरू तो बिहार से हुआ लेकिन अब इसकी अद्भुत छटा देश के कई हिस्सों में फैल चुकी है. सूर्य षष्ठी यानी डाला छठ (छठपर्व) 25 अक्टूबर से शुरू हो रहा है.

नहाए खाए के साथ शुरू होने वाले इस महापर्व का अपना ही महत्व माना जाता है. ये त्योहार कार्तिक शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से कार्तिक शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है.ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि इस बार चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व 25 अक्टूबर, शनिवार से 28 अक्टूबर मंगलवार तक चलेगा. ये भारतवर्ष का एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें अस्त होते हुए सूर्य की भी आराधना की जाती है.

मुहूर्त काल-

कार्तिक शुक्ल, चतुर्थी तिथि (24 अक्टूबर, शुक्रवार को अर्द्धरात्रि के बाद 1 बजकर 20 मिनट तक.
25 अक्टूबर, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 49 मिनट तक)
25 अक्टूबर, शनिवार को व्रत का प्रथम नियम-संयम
कार्तिक शुक्ल, पंचमी तिथि (25 अक्टूबर, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 49 मिनट से
26 अक्टूबर, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्वात् 6 बजकर 04 मिनट तक)
26 अक्टूबर, रविवार को द्वितीय संयम (एक समय खरना)
कार्तिक शुक्ल, पष्ठी तिथि (26 अक्टूबर, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 6 बजकर 04 मिनट से 27 अक्टूबर, सोमवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 6 बजकर 06 मिनट तक)
27 अक्टूबर, सोमवार को व्रत के तृतीय संयम के तहत सायंकाल अस्ताचल (अस्त होते हुए) सूर्यदेव को प्रथम अभ्यं दिया जाएगा.
कार्तिक शुक्ल, सप्तमी तिथि (27 अक्टूबर, सोमवार को अर्द्धरात्रि के बाद 6 बजकर 06 मिनट से 28 अक्टूबर, मंगलवार को प्रातः 8 बजकर 01 मिनट तक)
28 अक्टूबर, मंगलवार को चतुर्थ एवं अन्तिम संयम के अन्तर्गत प्रातः काल उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अर्घ्य देकर छठ व्रत का पारण किया जाएगा.

कब से कब तक है छठ पूजा-

– नहाय-खाय: 25 अक्टूबर 2025 (शनिवार)
– खरना: 26 अक्टूबर 2025 (रविवार)
– संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर 2025 (सोमवार)
– प्रातः कालीन अर्घ्य और पारण: 28 अक्टूबर 2025 (मंगलवार)

व्रत का विधान: ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी ने बताया कि इस चार दिवसीय महापर्व पर सूर्यदेव की पूजा के साथ माता षष्ठी देवी की भी पूजा-अर्चना करने का विधान है. इस पर्व पर नवीन वस्त्र, नवीन आभूषण पहनने की परम्परा है. यह व्रत किसी कारणवश जो स्वयं न कर सकें, वे अन्य व्रती को अपनी ओर से समस्त पूजन सामग्री व नकद धन देकर अपने व्रत को सम्पन्न करवाते हैं.

 

नहाय-खाय: प्रथम संयम 25 अक्टूबर, शनिवार को चतुर्थी तिथि के दिन स्वक्षता से नहाकर, सात्विक भोजन जिसमें कद्दू या लौकी की सब्जी, चने की दाल और हाथ की चक्की (जाता) से पीसे हुए गेहूं के आटे की पूड़ियां ग्रहण की जाती हैं, जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है.

खरना: द्वितीय संयम 26 अक्टूबर, रविवार को पंचमी तिथि को सायंकाल स्नान ध्यान के पश्चात् प्रसाद ग्रहण करते हैं, जो कि धातु या मिट्टी के नवीन बर्तनों में बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में (नये चावल से बने गुड़ की खीर) ग्रहण किया जाता है, जिसे अन्य भक्तों में भी वितरित करते हैं, इसे खरना के नाम से भी जाना जाता है.

 

अस्ताचल सूर्यदेव को अर्घ्य: तृतीय संयम 27 अक्टूबर, सोमवार को षष्ठी तिथि के दिन सायंकाल अस्ताचल (अस्त होते हुए) सूर्यदेव को पूर्ण श्रद्धाभाव से प्रथम अर्घ्य देकर उनकी पूजा की जाएगी. पूजा के अन्तर्गत भगवान सूर्यदेव को एक बड़े सूप या डलिया में पूजन सामग्री सजाकर साथ ही विविध प्रकार के ऋतुफल, व्यंजन, पकवान जिसमें शुद्ध देशी घी का गेहूं के आटे तथा गुड़ से बना हुआ ठेकुआ प्रमुख होता है, भगवान सूर्यदेव को अर्पित किया जाता है.

ज्योतिषी ने बताया कि भगवान सूर्यदेव की आराधना के साथ ही पष्ठी देवी की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा में गंगाघाट, नदी या सरोवर तट पर लोकगीत का गायन करते हैं, जो रात तक चलता रहता है. रात्रि जागरण से जीवन में नवीन ऊर्जा के साथ अलौकिक शान्ति भी मिलती है.

 

उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य: चतुर्थ संगम 28 अक्टूबर, मंगलवार को सप्तमी तिथि के दिन प्रातः काल उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अर्घ्य देकर छठ व्रत का पारण किया जाएगा. व्रती महिलाएं सौभाग्य की कामना के साथ भक्तों में प्रसाद वितरित करती हैं. जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य बना रहे. डाला छठ का पर्व पूर्ण स्वच्छता व सादगी के साथ मनाया जाता है, जिसमें नियम-संयम अति आवश्यक है. इस पर्व पर पूजा में परिवार के समस्त सदस्य पूर्ण श्रद्धा, आस्था व भक्ति के साथ अपनी सहभागिता निभाते हैं, जिससे जीवन में ऐश्वर्य, वैभव एवं सुख-समृद्धि मिलती है.

कौन है छठ मैया: शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है. इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन की जाती है. षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैइया कहते हैं. छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, इन्हें सूर्यदेव की बहन भी माना गया है.क्यों करते हैं छठ माता की पूजा: छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वरदान मांगने के लिए करती हैं. मान्यता अनुसार इस दिन निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान छठ मैया देती हैं.

 

इसकी धार्मिक-पौराणिक मान्यता-

– एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त तथा सप्तमी तिथि के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ था.
– सूर्य षष्ठी के व्रत से पाण्डवों को अपना खोया हुआ राजपाट एवं वैभव प्राप्त हुआ था.
– ऐसी भी पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि के दिन उपवास रखकर प्रत्यक्ष भगवान सूर्यदेव की आराधना कर तथा सप्तमी तिथि के दिन व्रत पूर्ण किया था. इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया था. फलस्वरूप इस चार दिवसीय महापर्व में भगवान सूर्य की ही आराधना करके छठपर्व मनाया जाता है.

 

1. छठ पूजा की पौराणिक कथा- पौराणिक शास्त्रों में छठ की कथा को देवी द्रोपदी से जोड़कर भी देखा जाता है. मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था. द्रोपदी के व्रत के फल से पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था. द्रोपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं.

2. छठ पूजा की पौराणिक कथा- एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की. कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था. वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था. आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है.

छठ पूजा पर गाए जाने वाले प्रमुख गीत: छठ पूजा बिहार, झारखंड, और कुछ लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी मनाते हैं. इस दौरान भोजपुरी और हिन्दी भाषा में भक्ति गीत गाए जाते हैं. कुछ गाने बॉलिवुड और भोजपुरी सिंगर ने भब गाए हैं जो कि लोकप्रिय हैं.

रिपोर्ट विजयलक्ष्मी तिवारी

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