वनांचल में उम्मीद की लौ जलाने का प्रयास, दस वर्षों से गरीबों के बीच दीपोत्सव रच रहे हैं युवा

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चंदौली, दीपावली खुशियों और उजाले का पर्व है, लेकिन जनपद के नक्सल प्रभावित वनांचल क्षेत्रों में अब भी कई घर ऐसे हैं, जहां अंधेरा अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है। इन इलाकों में रोशनी और उम्मीद की लौ जलाने का काम पिछले दस वर्षों से पूर्वांचल पोस्ट फाउंडेशन के युवाओं ने अपने कंधों पर उठा रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘लोकल फॉर लोकल’ पहल से प्रेरित होकर यह संस्था हर साल दीपोत्सव के मौके पर ग्रामीण कारीगरों से मिट्टी के दीपक खरीदकर वनवासी परिवारों तक पहुंचाती है—सिर्फ रोशनी नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता का संदेश भी।

इस वर्ष भी फाउंडेशन द्वारा 16 अक्टूबर को विनायकपुर, हिनौतघाट, पीतपुर, गरला, दिरेहूं का बैरा, फिरोजपुर और मुबारकपुर जैसे गांवों में दीपोत्सव मनाया जाएगा। कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार को स्वदेशी मिट्टी के दीपक, तेल, रुई की बत्ती, कैंडल, माचिस, मिठाई, बच्चों के लिए किताबें और मिट्टी के खिलौने प्रदान किए जाएंगे।

मंगलवार को फाउंडेशन के युवा पदाधिकारियों ने स्थानीय कुम्हारों से 4 हजार मिट्टी के दीपक खरीदे। इन्हीं दीपकों से 16 अक्टूबर की शाम मुबारकपुर और हिनौत घाट के वनवासी परिवारों की झोपड़ियां रोशन होंगी।

फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान, काशी विद्यापीठ वाराणसी के पूर्व निदेशक प्रोफेसर ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि “हमारा उद्देश्य केवल दीपक बांटना नहीं है, बल्कि वनवासी परिवारों के जीवन में उम्मीद की रोशनी फैलाना है। स्वदेशी उत्पादों के माध्यम से आत्मनिर्भरता और स्थानीय कारीगरों के सम्मान का संदेश देना हमारी प्राथमिकता है।”

उन्होंने कहा कि “हर साल संस्था के सदस्य कुम्हार भाईयों से हजारों दीपक खरीदते हैं, जिससे उन्हें आर्थिक सहयोग मिलता है और स्वदेशी परंपरा को प्रोत्साहन भी।”

फाउंडेशन के प्रबंधक प्रशांत गुप्ता ने बताया कि इस अभियान में किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं ली जाती, बल्कि सभी खर्च युवा स्वयं वहन करते हैं। “हमारा उद्देश्य सेवा है, न कि प्रचार। यह जानकर संतोष होता है कि जिन गांवों में कभी अंधेरा और भय का माहौल था, वहां अब दीपकों की लौ से उम्मीद जगने लगी है,” उन्होंने कहा।

यह पहल ‘लोकल फॉर लोकल’ के सिद्धांत को जमीनी स्तर पर साकार कर रही है। सीमित संसाधनों के बावजूद इन युवाओं की निष्ठा और सेवा भावना ने इस अभियान को एक जनआंदोलन का रूप दे दिया है।

कुम्हार भाईयों के हुनर और मिट्टी की खुशबू से जुड़े ये दीपक अब वनवासियों के चेहरों पर मुस्कान और घरों में उजाला बिखेर रहे हैं। यह दीपोत्सव सिर्फ रोशनी का नहीं, बल्कि उम्मीद, स्वदेशी गर्व और सामाजिक बदलाव का उत्सव बन गया है।

रिपोर्ट - अलीम हाशमी

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