वाराणसी अखिल भारतीय विद्वत् परिषद् के रजत जयन्ती महोत्सव का उद्घाटन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सन्त एवं विद्वानों के करकमलों से दीप प्रज्वलित कर हुआ। मंचस्थ अतिथियों का माल्यार्पण एवं वाक्यपुष्प द्वारा स्वागत प्रो. रामपूजन पाण्डेय ने किया।विद्वत् परिषद् का वृत्तनिवेदन डॉ. कामेश्वर उपाध्याय (महासचिव) ने किया। मंचस्थ विद्वानों ने अपने-अपने उद्गार में विद्वत् परिषद् की अनूठी कार्यशैली एवं उपलब्धियों को लेकर सराहना की। इस कार्यक्रम में प्रो. पी.एन. सिंह (वाराणसी), प्रो. कैलाश नाथ तिवारी (इटावा), प्रो. केशव राम शर्मा (हिमाचल प्रदेश), जगद्गुरु शंकराचार्य हेमानन्द गिरि (नेपाल), स्वामी हरिप्रिय दास महाराज (वृंदावन) ने अपने विशेष वक्तव्य दिये। सभा की अध्यक्षता प्रो. जयशंकर लाल त्रिपाठी (अध्यक्ष) ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राम पूजन पांडेय (उपाध्यक्ष) ने किया।
द्वितीय सत्र में बाहर से पधारे हुए विद्वानों ने गंभीर विषयों पर अपने वक्तव्य एवं शोध को प्रस्तुत किया। गुरुकुल पद्धति के स्वरूप को लेकर विचार मंथन हुआ। धर्म-राष्ट्र का सम्प्रसार और सनातन संस्कारों के जागरण को लेकर विद्वानों में सजगता देखी गयी। असम, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, बिहार, जयपुर आदि से आये हुए विद्वानों ने अपने-अपने सारगर्भित विचारों को रखा।विद्वत् परिषद् की ओर से प्रकाशित कतिपय पुस्तकों का विमोचन एवं वितरण भी विद्वानों के बीच हुआ। बाहर से आए हुए अनेक विद्वानों ने कहा कि काशी के बाहर भी इसी तरह के गौरवपूर्ण सम्मेलनों की आवश्यकता है।
भारतवर्ष में ईसाई मान्यता वाले पंचांगों के हस्तक्षेप के कारण व्रत-पर्व में विवाद खड़ा हो गया है। हम सभी को ऋषियों के मत के अनुसार गणित एवं धर्मशास्त्र का आचरण करना होगा। हिन्दू समाज के भीतर जितनी भी समस्यायें हैं, उन समस्याओं का गहराई से निदान विद्वत् परिषद् को सोचना होगा। अखिल भारतीय विद्वत् परिषद् से जुड़े दीर्घकालिक सेवा देने वाले २२ विद्वानों और विदुषियों का रजत जयन्ती महोत्सव के शुभ अवसर पर शारदा सम्मान से सभाजन हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ धवल उपाध्याय ने किया।इसी के साथ प्रथम दिवस का कार्यक्रम पूर्ण हुआ।











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