काशी में आज जीवंत होगी पाँच सौ साल पुरानी परंपरा — तुलसी घाट पर सजेगा ‘नाग नथैया’, गंगा तट बनेगा वृंदावन!

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वाराणसी-   काशी की पावन धरती एक बार फिर से भक्ति, आस्था और परंपरा के रंगों में रंगने जा रही है। तुलसी घाट पर आज शाम 4 बजे से होने वाली ऐतिहासिक ‘नाग नथैया’ कृष्णलीला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि पाँच सौ वर्षों से चली आ रही जीवंत परंपरा का प्रतीक है। यह वही दिव्य क्षण है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का संहार किया था — और हर वर्ष यह दृश्य तुलसी घाट पर सजीव होकर करोड़ों हृदयों में भक्ति की लहरें जगा देता है।

हर-हर महादेव और जय श्रीकृष्ण से गूंजेगी काशी

हर साल की तरह इस बार भी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की विशेष संध्या पर गंगा तट पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ेगा। जैसे ही कृष्ण स्वरूप अपनी टोली के साथ तुलसी घाट की सीढ़ियां उतरते हैं, वातावरण भक्तिमय हो उठता है। गंगा किनारे ‘हर हर महादेव’ और ‘जय श्रीकृष्ण’ के जयकारों से पूरी काशी गूंजने लगती है।

इस दौरान टोडरमल द्वारा दान की गई हवेली की बुर्ज से ‘कंस’ लीला को देखता है, और घाट पर विराजमान संकटमोचन मंदिर के महंत इसकी साक्षी बनते हैं। यह परंपरा न केवल काशी की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब का अद्भुत उदाहरण भी पेश करती है।

तुलसीदास के युग से चली आ रही परंपरा

मान्यता है कि नाग नथैया लीला की शुरुआत संत गोस्वामी तुलसीदास के समय में हुई थी। तुलसी घाट की वही प्राचीन सीढ़ियां आज भी इस इतिहास की गवाह हैं। उस दौर में जब शिव की नगरी काशी में कृष्ण की बाललीला का मंचन होता था, तो लोग दूर-दूर से उमड़कर आते थे।

आज भी अस्सी घाट से लेकर चेतसिंह किले तक श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। घाट की सीढ़ियों से लेकर गंगा की लहरों में तैरती नावों तक करीब सवा लाख भक्त इस अद्भुत दृश्य के साक्षी बनते हैं। विदेशी पर्यटक भी इस भव्य आयोजन को देखने हर साल बड़ी संख्या में आते हैं।

रोमांचक क्षण — जब कृष्ण गंगा में उतरते हैं

लीला का सबसे रोमांचक दृश्य तब आता है, जब बालक कृष्ण कदंब वृक्ष पर चढ़कर छलांग लगाते हैं और कालिया नाग के फन पर चढ़कर नृत्य करते हैं। यह क्षण इतना जीवंत होता है कि गंगा मानो यमुना में बदल जाती है।

इस दौरान सुरक्षा और परंपरा दोनों की जिम्मेदारी निभाते हैं तुलसी घाट के वरिष्ठ गोताखोर बैजनाथ मल्लाह और उनकी टीम। 84 वर्षीय बैजनाथ बीते 75 वर्षों से इस लीला का हिस्सा रहे हैं और अब भी उसी जोश से आयोजन का संचालन करते हैं। उनके दल के गोताखोर यह सुनिश्चित करते हैं कि मंचन के दौरान सुरक्षा बनी रहे और परंपरा अक्षुण्ण रहे।

जब गंगा बनी यमुना — भक्ति का चरम क्षण

जब कृष्ण स्वरूप कलाकार नाग के फन पर नृत्य करते हुए जल से बाहर आते हैं, तो पूरा घाट एक स्वर में गूंज उठता है —
“नाग नथैया वृंदावन लाल की जय!”वह क्षण केवल अभिनय नहीं, बल्कि भक्ति, आस्था और परंपरा का जीवंत संगम होता है। उस पल गंगा का तट तीनों संप्रदायों — शैव, शाक्त और वैष्णव — के एकत्व का प्रतीक बन जाता है।

काशी में आज वृंदावन उतरेगा

आज शाम तुलसी घाट पर जब कृष्ण गंगा में उतरेंगे, तो शिव की नगरी काशी एक बार फिर वृंदावन के रंगों में रंग उठेगी। गंगा की लहरों में बहेगी भक्ति की तरंग, और आसमान गूंजेगा भगवान श्रीकृष्ण के जयघोष से।

यह आयोजन सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि काशी की आत्मा की पुकार है —
“जहाँ गंगा, वहाँ कृष्ण — और जहाँ कृष्ण, वहाँ काशी की महिमा अनंत!”

 

रिपोर्ट -विजयलक्ष्मी तिवारी

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