लर्नर डीएल के लिए की गई ऑनलाइन व्यवस्था जंजाल बनते दिख रही है। लोगों की फीस तो कट जा रही है, लेकिन ओटीपी नहीं आने से लर्नर डीएल नहीं बन पा रहे हैं। राजधानी में 1450 आवेदकों के मामले सामने आए हैं।
राजधानी लखनऊ में ओटीपी ना आने से लोगों के लर्नर ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बन पा रहे हैं। इससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हैरानी वाली बात यह है कि फीस समय पर कट जा रही है।लेकिन, फिर भी ओटीपी नहीं आ रही है।
अलीगंज निवासी खुशबू शाक्य ने बताया कि उन्होंने लर्नर ड्राइविंग लाइसेंस के लिए दो हफ्ते पहले ऑनलाइन आवेदन किया था
उनका एप्लीकेशन नंबर 2664453225 है। आधार कार्ड के अनुसार, उन्होंने अपना विवरण भरा, लेकिन मोबाइल पर ओटीपी नहीं आया। उन्होंने साइबर कैफे की भी मदद ली, लेकिन ओटीपी फिर भी नहीं आया।
डीएल से जुड़ा ओटीपी नहीं आ रहा
उन्होंने आधार लिंक नंबर दूसरे मोबाइल फोन में डालकर भी प्रयास किया, पर ओटीपी नहीं आया। 350 रुपये की फीस कट चुकी है। लेकिन, डीएल भी नहीं बन पाया है। वह अकेली नहीं हैं। लर्नर ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले ऐसे सैकडों आवेदक हैं, जिनके मोबाइल पर सिर्फ डीएल से जुड़ा ओटीपी नहीं आ रहा है। पिछले कई हफ्तों से यह समस्या बनी हुई है।
इस दौरान ओटीपी नहीं मिलने से 1,450 आवेदकों के लर्नर लाइसेंस नहीं बन सके हैं, जबकि उनकी फीस भी कट गई है। ऐसे ही केशवनगर निवासी गौरी दीक्षित का लर्नर डीएल अटका हुआ है। जो दो बार आवेदन कर फीस जमा कर चुकी हैं।
एनआईसी सर्वर की गड़बड़ी के चलते प्रक्रिया अटकी
हैरानी की बात यह है कि आवेदकों की इस समस्या का समाधान परिवहन विभाग के अफसरों के पास नहीं है। एनआईसी सर्वर की गड़बड़ी के चलते ऐसा हो रहा है। एनआईसी को समस्या के बाबत लिखित रूप में जानकारी दी गई है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही। ऐसे में आवेदकों की समस्याओं का निस्तारण कैसे होगा, बताने वाला कोई नहीं है।दरअसल, लर्नर डीएल की व्यवस्था ऑनलाइन है।
इसके लिए आरटीओ आने की आवश्यकता नहीं होती। परिवहन विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर लर्नर डीएल बनता है, जिसकी फीस 350 रुपये है। इसके बन जाने के बाद स्थायी डीएल के लिए आरटीओ जाकर बायोमीट्रिक, फोटो, साइन आदि के बाद टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इसमें पास होने पर डीएल बनता है और डाक से आवेदक के घर पर डिलीवर होता है।
लेकिन, ओटीपी नहीं आने से डीएल की प्रक्रिया ही पूरी नहीं हो पा रही है। इससे परमानेंट डीएल भी नहीं बन पा रहे हैं।
रिपोर्ट – जगदीश शुक्ला











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