काशी ने एक ऐतिहासिक और दिव्य क्षण का आनंद अनुभव किया— ऐसा क्षण जिसे सनातन समाज में सर्वत्र प्रचारित किया जाना चाहिए। जहाँ आधुनिक भारत के तेजस्वी वेद-तेज का उदय हुआ— देवव्रत महेश रेखे (अहिल्यानगर, महाराष्ट्र) के भव्य अभिनंदन समारोह के रूप में। सिर्फ 19 वर्ष की आयु में इस दिव्य प्रतिभा ने दण्डक्रम वेद पारायण के अंतर्गत 🔱 25 लाख से भी अधिक पदों का 🔱 लगातार 50 दिनों तक 🔱 बिना किसी ग्रंथ का सहारा लिए, एक भी त्रुटि के बिना उच्चारण कर सनातन वेद परंपरा का मस्तक गर्व से ऊँचा कर दिया है। इस पावन क्षण में पूज्य डॉ. दिव्यचेतन ब्रह्मचारी गुरुजी की पावन उपस्थिति में चांदी की हनुमान चालीसा प्रभु श्रीराम का दिव्य विग्रह माँ भगवती के प्रसाद स्वरूप चंदन-इत्र समर्पित कर उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त, श्रृंगेरी शारदा पीठ के जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी की ओर से स्वर्ण कड़ा ₹1,00,000 की आशीर्वाद-राशि भेंट की गई — जो इस अद्भुत युवक की साधना, वेदनिष्ठा और अनुशासन की सर्वोच्च पुष्टि है। यह सम्मान किसी एक साधक का नहीं, बल्कि सनातन वेद संस्कृति के पुनरुत्थान का वैश्विक उद्घोष है।

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काशी ने एक ऐतिहासिक और दिव्य क्षण का आनंद अनुभव किया— ऐसा क्षण जिसे सनातन समाज में सर्वत्र प्रचारित किया जाना चाहिए।
जहाँ आधुनिक भारत के तेजस्वी वेद-तेज का उदय हुआ—
देवव्रत महेश रेखे (अहिल्यानगर, महाराष्ट्र)
के भव्य अभिनंदन समारोह के रूप में।

सिर्फ 19 वर्ष की आयु में इस दिव्य प्रतिभा ने
दण्डक्रम वेद पारायण के अंतर्गत
🔱 25 लाख से भी अधिक पदों का
🔱 लगातार 50 दिनों तक
🔱 बिना किसी ग्रंथ का सहारा लिए, एक भी त्रुटि के बिना
उच्चारण कर सनातन वेद परंपरा का मस्तक गर्व से ऊँचा कर दिया है।

इस पावन क्षण में
पूज्य डॉ. दिव्यचेतन ब्रह्मचारी गुरुजी की पावन उपस्थिति में

चांदी की हनुमान चालीसा
प्रभु श्रीराम का दिव्य विग्रह
माँ भगवती के प्रसाद स्वरूप चंदन-इत्र
समर्पित कर उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया गया।

इसके अतिरिक्त, श्रृंगेरी शारदा पीठ के
जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी की ओर से

स्वर्ण कड़ा
₹1,00,000 की आशीर्वाद-राशि
भेंट की गई —
जो इस अद्भुत युवक की साधना, वेदनिष्ठा और अनुशासन की सर्वोच्च पुष्टि है।

यह सम्मान किसी एक साधक का नहीं,
बल्कि सनातन वेद संस्कृति के पुनरुत्थान का वैश्विक उद्घोष है।

 

 

रिपोर्ट – जगदीश शुक्ला

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