वाराणसी देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में सोमवार से शक्ति उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र आरंभ हो गया। प्रथम दिवस माता शैलपुत्री की आराधना का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इनकी उपासना से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है। काशी में अलईपुरा स्थित शैलपुत्री मंदिर स्थित है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में अलसुबह से ही मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। जगह-जगह “जय जगदंबे” और “जय माता दी” के स्वर गूंजते रहे।

मान्यता है कि पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेकर माता शैलपुत्री ने अवतार लिया और बाद में यही स्वरूप पार्वती के नाम से भगवान भोलेनाथ की अर्धांगिनी बनीं। नवरात्र के प्रथम दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में अलईपुरा स्थित माता शैलपुत्री मंदिर पहुंचे। भोर से ही दर्शन-पूजन का क्रम शुरू हो गया। श्रद्धालुओं ने नारियल, फूल-मालाएं और चुनरी अर्पित कर माता की आराधना की। इस दौरान पूरा मंदिर परिसर “जय माता दी” के जयकारों से गूंज उठा।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि—
“मां शैलपुत्री महान उत्साह और शक्ति प्रदान करने वाली देवी हैं। उनकी पूजा से भय का नाश होता है, यश-कीर्ति, धन और विद्या की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, उनकी आराधना से मोक्ष की प्राप्ति भी संभव है।”
श्रद्धालुओं का कहना था कि नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है और मां के दर्शन से ही शक्ति साधना की यात्रा पूर्णता की ओर बढ़ती है। काशी में नवरात्र का शुभारंभ इस आस्था और उत्साह के साथ हुआ कि आने वाले नौ दिनों तक काशी नगरी, मां दुर्गा के विविध स्वरूपों की आराधना में रमी रहेगी।
मां शैलपुत्री मंदिर का इतिहास
मां शैलपुत्री का वाराणसी स्थित प्राचीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी के अनुसार मंदिर का इतिहास इतना पुराना है कि इसके निर्माण की सही जानकारी किसी को उपलब्ध नहीं है।









Users Today : 118
Users This Year : 11410
Total Users : 11411
Views Today : 163
Total views : 24283