इस बार ये तिथि दो दिन है। कल यानी 20 दिसंबर की सुबह करीब 7 बजे तक पौष अमावस्या रहेगी, शुक्रवार को पूरे दिन ये तिथि होने से अमावस्या से जुड़े धर्म-कर्म आज ही किए जाएंगे। पौष अमावस्या पर पूजा-पाठ, पितृ तर्पण, स्नान-दान, ग्रह शांति जैसे शुभ काम जरूर करना चाहिए।
अमावस्या तिथि का संबंध मुख्य रूप से पितरों से है। घर-परिवार के मृत सदस्यों को पितर माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए तर्पण, श्राद्ध और दान-पुण्य से कुटुंब के पितर देवताओं को तृप्ति मिलती है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष है, उन्हें अमावस्या तिथि पर पितरों के लिए धर्म-कर्म करने की सलाह दी जाती है।
ज्योतिष में अमावस्या तिथि का संबंध सूर्य और चंद्रमा से है। इस दिन ये दोनों ग्रह एक ही राशि में होते हैं। इस समय चंद्र और सूर्य धनु राशि में स्थित हैं। अमावस्या पर चंद्रमा पूर्ण रूप से अदृश्य हो जाता है, चंद्र की इस कला को अमा कहते हैं। मान्यता है कि अमा कला में चंद्र की सभी 16 कलाओं की शक्तियां होती हैं, इसलिए अमावस्या तिथि पर चंद्रदेव की विशेष पूजा करनी चाहिए। चंद्र देव की प्रतिमा न हो तो शिवलिंग पर स्थापित चंद्रदेव की पूजा की जा सकती है।
चंद्रमा मन, भावनाओं और माता का कारक ग्रह है। अमावस्या पर चंद्र की पूजा करने से मन शांत होता है, हमारी भावनाएं नियंत्रित रहती हैं और माता से सुख प्राप्त होता है। इस दिन सूर्यदेव की भी पूजा करनी चाहिए। सूर्य पूजा से आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है और मान-सम्मान मिलता है। पौष अमावस्या पर किए गए दान-पुण्य, तप, जप और सेवा से पितरों के साथ ही सूर्यदेव और चंद्रदेव की कृपा भी मिलती है।











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