डीएसआर कॉन्क्लेव 2025 वाराणसी में सम्पन्न — मशीनीकरण और जलवायु-संवेदनशील धान प्रणाली के विस्तार का रोडमैप पर चर्चा

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वाराणसी   भारत 7 अक्टूबर 2025 अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान – दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क), वाराणसी में तीन दिवसीय डायरेक्ट-सीडेड राइस (डीएसआर) कॉन्क्लेव 2025 सम्पन्न हुआ। इस समापन सत्र में वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं, और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों ने डीएसआर को बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए विज्ञान-आधारित रणनीतियाँ, साझेदारी और नीतिगत ढांचे को आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया। अंतिम दिन का सत्र “डीएसआर कंसोर्टियम मीटिंग और मशीनीकृत डीएसआर के विस्तार हेतु हितधारक मूल्यांकन” विषय पर आयोजित हुआ, जिसमें भारत, वियतनाम, कंबोडिया और वैश्विक शोध नेटवर्क के विशेषज्ञ शामिल हुए। सत्र में डीएसआर की भूमिका पर चर्चा हुई कि कैसे यह तकनीक उत्पादकता बढ़ाने, जल उपयोग दक्षता सुधारने और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मददगार हो सकती है।

कार्यशाला में विभिन्न साझेदार संगठनों और नेटवर्क की पहचान की गई, ताकि डीएसआर के सतत विस्तार के लिए विज्ञान-आधारित रोडमैप तैयार किया जा सके। प्रतिभागियों ने अनुसंधान, नीति और बाजार के बीच सहयोग के नए मॉडल सुझाए ताकि डीएसआर को अधिक किसानों तक पहुँचाया जा सके।अफ्रिका राइस के कार्यक्रम प्रमुख डॉ. सेंथिलकुमार कलिमुथु ने कहा कि विविध कृषि-परिस्थितियों में डीएसआर को मुख्यधारा में लाने के लिए मशीनीकरण और क्षमता निर्माण अहम होंगे, और अफ्रीका में भी इस तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग आवश्यक है।

सत्र में वियतनाम के डॉ. गुयेन वैन बो, कंबोडिया के डॉ. कॉन्ग केआ और डॉ. रिका जॉय फ्लोर, तथा बायर क्रॉप साइंस की सुश्री विन्नी गंधम जैसे विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने डीएसआर के क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रथाओं के एकीकरण, किसानों की भागीदारी, और निजी क्षेत्र की भूमिका को विस्तार के लिए महत्वपूर्ण बताया।5 से 7 अक्टूबर तक चले इस तीन दिवसीय सम्मेलन ने बहु-हितधारक सहयोग को एक मंच पर लाया और इस प्रतिबद्धता को दोहराया कि इरी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ विज्ञान-आधारित, जलवायु-संवेदनशील, संसाधन-कुशल और किसान-केंद्रित धान प्रणालियों के प्रसार के लिए लगातार कार्य करता रहेगा।

तीन दिनों की चर्चा से तीन मुख्य निष्कर्ष सामने आए:

डीएसआर के व्यापक अपनाव के लिए कृषि और तकनीकी प्रगति विशेषज्ञों ने विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार उपयुक्त कृषि तकनीक और मशीनीकरण के संयोजन पर जोर दिया। डीएसआर की सफलता के लिए स्थान-विशिष्ट प्रबंधन पद्धतियाँ—जैसे सही बुवाई का समय, पोषक तत्वों का संतुलित प्रबंधन, और प्रभावी खरपतवार नियंत्रण—आवश्यक बताए गए। साथ ही, मशीनीकृत बुवाई तकनीक को श्रम और पानी की कमी से निपटने के लिए महत्वपूर्ण माना गया।

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय परिस्थितियों में डीएसआर की उपयुक्तता का मूल्यांकन वैज्ञानिकों ने बताया कि डीएसआर से पानी की खपत घटाई जा सकती है, मीथेन उत्सर्जन कम होता है, और मिट्टी में कार्बन संरक्षित रहता है। हालांकि, हर क्षेत्र की भिन्न परिस्थितियों (जैसे मिट्टी की बनावट, वर्षा की मात्रा और खरपतवार दबाव) को ध्यान में रखते हुए स्थानीय स्तर पर उपयुक्त पैकेज विकसित करने की आवश्यकता है।

किसानों तक डीएसआर पहुँचाने के लिए नीति और संस्थागत समर्थन विशेषज्ञों ने कहा कि सहायक नीतियाँ और संस्थागत ढाँचे डीएसआर को बढ़ावा देने के लिए जरूरी हैं। उन्होंने मशीनरी पर सब्सिडी, कस्टम हायरिंग केंद्रों के लिए प्रशिक्षण, और नवाचार वित्तीय मॉडल जैसी योजनाओं की सिफारिश की, ताकि अधिक से अधिक किसान इस तकनीक को अपनाएँ और सेवा प्रदाताओं का नेटवर्क विस्तृत हो।

 

 

रिपोर्ट विजयलक्ष्मी तिवारी

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